हज़रत ज़िया उद्दीन अब्बू नजीब सुह्रवर्दी
रहमतुह अल्लाह अलैहि
आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की विलादत बासआदत माह सिफ़र ४९०हिज्री में सरोरद के मुक़ाम पर हुई। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि का इस्म गिरामी अब्दुह लुका हर कुनिय्यत अबदालनजीब और अलक़ाबात शेख़ अलाव सलाम और ज़याइआलदीन हैं। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि का शिजरा नसब चंद वासतों से हज़रत अबूबकर सिद्दीक़ रज़ी अल्लाह तआला अन्ना से जा मिलता है।
आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने इबतिदाई तालीम अपने घर पर हासिल की फिर आला तालीम के लिए सरोरद से बग़दाद तशरीफ़ ले आए और फिर मुदर्रिसा निज़ामीया में दाख़िल होगए और मस्नद फ़ज़ीलत हासिल की। इलम के शौक़ में आप रहमतुह अल्लाह अलैहि इस्फ़हान और सिकंदरीया भी तशरीफ़ ले गए और वहां के उलमा से भी मुस्तफ़ीद हुए।आप रहमतुह अल्लाह अलैहि को बग़दाद में इसी मुदर्रिसा निज़ामीया का नाज़िम आला बना दिया गया। जिस के बाद मुदर्रिसा ने ख़ूब तरक़्क़ी की। लेकिन बाद में कुछ ऐसे हालात पैदा होगए जिस की बना पर आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने बतौर-ए-एहतजाज अस्तीफ़ा देदिया।
ज़ाहिरी उलूम की तकमील के बाद आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने शाहराह सुलूक में क़दम रखा और अपने चचा हज़रत-ए-शैख़ वजीहा उद्दीन सुह्रवर्दी रहमतुह अल्लाह अलैहि के दस्त हक़ पर बैअत फ़रमाई और उन्ही की निगरानी में मनाज़िल सुलूक तै करके ख़िरक़ा ख़िलाफ़त हासिल किया। इस के बाद आप रहमतुह अल्लाह अलैहि हज़रत इमाम अहमद ग़ज़ाली रहमतुह अल्लाह अलैहि की ख़िदमत में हाज़िर हुए और ज़ाहिरी-ओ-बातिनी फ़ैज़ान से मुस्तफ़ीद हुए और हज़रत इमाम अहमद ग़ज़ाली रहमतुह अल्लाह अलैहि से ख़िरक़ा ख़िलाफ़त हासिल किया। इस के इलावा आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने हज़रत अबदुलक़ादिर जीलानी रहमतुह अल्लाह अलैहि से भी ख़िरक़ा ख़िलाफ़त हासिल किया।जब हज़रत ग़ौस पाक रहमतुह अल्लाह अलैहि ने फ़रमाया था कि मेरा क़दम सारे वलीयों की गरदनों पर है तो आप रहमतुह अल्लाह अलैहि भी इस मजलिस में मौजूद थे और आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने अपना सर मुबारक झुका लिया था।
हज़रत शहाब उद्दीन सुह्रवर्दी रहमतुह अल्लाह अलैहि फ़रमाते हैं की एक बार मेरे शेख़ हज़रत अब्बू नजीब सुह्रवर्दी रहमतुह अल्लाह अलैहि हज के लिए तशरीफ़ ले गए में भी आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के हमराह था। एक रात आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ख़लवतगाह में मराक़बे में थे और मुझे आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने दरवाज़े पर मुतय्यन कर दिया था ताकि कोई मुख़िल ना हो। एक शब अचानक हज़रत ख़िज़र अलैहि अस्सलाम आप रहमतुह अल्लाह अलैहि से मुलाक़ात के लिए तशरीफ़ लाए और मुझे कहा अंदर जाकर मेरा सलाम पहुँचाओ और कहो कि आप रहमतुह अल्लाह अलैहि का दोस्त ख़िज़र अलैहि अस्सलाम आप रहमतुह अल्लाह अलैहि से मुलाक़ात को आया है। चुनांचे में अंदर गया सलाम वपीग़ाम पहुंचाया लेकिन आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने कोई तवज्जा ना दी। इसी तरह तीन बार ऐसा हवा में अंदर गया लेकिन आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने कोई तवज्जा ना दी। चुनांचे सुबह सादिक़ होने लगी और हज़रत ख़िज़र अलैहि अस्सलाम मुझ से रुख़स्त होते वक़्त फ़रमाने लगे कि जब शेख़ मराक़बे से फ़ारिग़ होजाएं तो मेरा सलाम पहुंचा देना।
जब शेख़ मराक़बे से फ़ारिग़ हुए तो मैंने सलाम पहुंचाया और अर्ज़ की कि हज़रत ख़िज़र अलैहि अस्सलाम से मुलाक़ात की तो बड़े बड़े बुज़ुर्गों की तमन्ना है लेकिन आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने कोई तवज्जा ना दी।आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने फ़रमाया कि ए बेटे जो शख़्स मालिक-उल-मुलक के मुशाहिदे में मसरूफ़ हो इस के लिए मुनासिब नहीं कि उधर से रुगिरदानी करके मख़लूक़ की जानिब मुतवज्जा हो।ए बेटे में उस वक़्त आलम तजल्ली में मुसतग़र्क़ि था और अल्लाह की मुनाजात में मशग़ूल था। अगर वो वक़्त फ़ौत होजाता तो वो दुबारा कहाँ से मिलता और क़ियामत तक नदामत रहती। ख़्वाजा ख़ज़रऑ तो फिर भी मिल जाऐंगे अभी आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के मुँह से ये अलफ़ाज़ निकल रहे थे कि हज़रत ख़िज़र अलैहि अस्सलाम दुबारा तसरीफ़ ले आए। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने उठ कर उन का इस्तिक़बाल किया और अदब-ओ-एहतिराम से अपनी जगह पर बिठाया।
हज़रत इमाम याफ़ई रहमतुह अल्लाह अलैहि अपनी किताब में तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रत-ए-शैख़ अब्बू नजीब सुह्रवर्दी रहमतुह अल्लाह अलैहि के एक मुरीद ने कहा कि एक रोज़ हम हज़रत अबदालनजीब सुह्रवर्दी रहमतुह अल्लाह अलैहि के हमराह बग़दाद के बाज़ार से गुज़र रहे थे कि एक क़स्साब की दूकान पर पहुंचे वहां एक बिक्री लटकी हुई थी। शेख़ खड़े होगए और फ़रमाया कि ये बिक्री कहती है कि मन मुर्दा उम ना कुशता यानी कि में मुर्दा हूँ मुझे ज़बह नहीं किया गया। क़स्साब ये सुनते ही बेहोश होकर गिर पड़ा जब होश में आया तो हज़रत-ए-शैख़ की बात का इक़रार किया और अपने गुनाह से तौबा की और ताअब होगया।
हज़रत अब्बू नजीब सुह्रवर्दी रहमतुह अल्लाह अलैहि १७जमादी अलाख़र ५६३हिज्री में इस दार फ़ानी से रुख़स्त हुए। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि का मज़ार अक़्दस बग़दाद शरीफ़ में दरयाए दजला के किनारे वाक़्य है।